Pitru Paksha 2025: सनातन परंपरा में पितरों की मुक्ति के लिए किए श्रद्धा के साथ किए जाने वाले श्राद्ध का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. पितृपक्ष में घर के अलावा किन तीर्थ स्थानों पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना फलदायी होता है, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
सनातन परंपरा में पितरों की तृप्ति और मुक्ति के लिए श्राद्ध की प्राचीन परंपरा है. श्रद्धा के अनुसार की जाने वाली यह क्रिया ही श्राद्ध कहलाती है. जिसे हर साल आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या के बीच में किया जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध में किया दान और कराया गया भोजन पितरों तक सार तत्व रूप में पहुंचता है. पितर जिस योनि में होते हैं उस योनि के अनुरूप श्राद्ध सामग्री पहुंचकर उन्हें संतुष्टि प्रदान करती है.अब सवाल ये है कि यह श्राद्ध किन तीर्थ स्थान पर करने पर सफल होता है? आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
1. गया – पितरों का सबसे बड़ा तीर्थ
सप्तपुरियों में से एक गया को श्राद्ध के लिए बहुत ज्यादा फलदायी माना गया है. सनातन परंपरा में इसे पितरों का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है. मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति पितृपक्ष में फल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर में अपने पितरों का नाम, गोत्र आदि के साथ श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी कारण से इस पवित्र स्थल को मुक्तिधाम भी कहते हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार गया में किया श्राद्ध सात पीढ़ियों का उद्धार करता है.
2. वाराणसी – पिशाचमोचन कुंड
बाबा विश्वनाथ की नगरी कहलाने वाली काशी या फिर कहें वाराणसी में पितरों के लिए किये जाने वाले श्राद्ध का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. वाराणसी के कर्मकांड और धर्म के मर्मज्ञ पं. अतुल मालवीय बताते हैं कि काशी के मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का बहुत ज्यादा महत्व है. उनके अनुसार गया श्राद्ध करने से पहले व्यक्ति को काशी के पिशाचमोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करना होता है. इसे पितृकुंड, मातृकुंड और विमल तीर्थ भी कहते हैं. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने पर दिवंगत आत्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है.
3. हरिद्वार – हरि की पौड़ी
गया की तरह हरिद्वार में किए जाने वाले श्राद्ध का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित और गंगा सभा के सचिव उज्जवल पंडित के अनुसार में मुख्य रूप से कुशावर्त घाट और नारायण शिला पर पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है. हर की पौड़ी के पास स्थित कुशावर्त घाट पर श्राद्ध कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. वहीं जिनके पितर प्रेत योनि को प्राप्त होकर कष्ट का कारण बनने लगते हैं, उनकी मुक्ति के लिए नारायण शिला में श्राद्ध किया जाता है.
4. बद्रीनाथ में श्राद्ध का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार बद्रीनाथ के ब्रह्मकपाल घाट पर पिंडदान करने का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व माना गया है. मान्यता है कि भगवान शिव को इसी पावन तीर्थ पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. बद्रीनाथ के पुजारी भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि अपने पितरों का अंतिम श्राद्ध करने के लिए लोग इसी पावन स्थान पर आते हैं. उनके अनुसार बद्रीनाथ में श्राद्ध और तर्पण गया से कई गुना ज्यादा फलदायी माना गया है.