Thursday, October 9, 2025
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महासमुंद की बेटी डॉ प्रज्ञा चंद्राकर का चयन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए हुआ है। महासमुंद की बेटी प्रज्ञा चंद्राकार अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय कोरोना वायरस और उसके वैक्सीन पर करेगी काम।

महासमुंद की बेटी डॉ प्रज्ञा चंद्राकर का चयन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए हुआ है। महासमुंद की बेटी प्रज्ञा चंद्राकार अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय कोरोना वायरस और उसके वैक्सीन पर करेगी काम। बेटी की इस उपलब्धि पर परिवार सहित महासमुन्द में खुशी की लहर, बेटी ने छत्तीसगढ़ ही बल्कि पूरे भारत को गौरान्वित किया है। विश्व इस समय कोरोना महामारी से जूझ रहा है कोरोना ने पूरे विश्व मे कोहराम मचा रखा है कोरोना से बचने के लिए एक ही चीज सबसे कारगर मानी जा रही है वह है वैक्सीन, वैक्सीन से ही कोरोना जैसे गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। महासमुन्द की रहने वाली डॉक्टर प्रज्ञा चंद्राकर का चयन विश्व के तीन जाने माने विश्वविद्यालय में से एक हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हुआ है यहां महासमुन्द की बेटी डॉक्टर प्रज्ञा चंद्राकर कोविड 19 वायरस पर काम करेगी और वैक्सीन निर्माण में भी अहम भूमिका निभाएंगी।

महासमुन्द के क्लबपारा में रहने वाले चंद्राकर परिवार की दो बहन और एक भाई में प्रज्ञा चंद्राकर सबसे बड़ी बेटी है, प्रज्ञा के पिता गजानंद चंद्राकर शिक्षक है माँ मंजू चंद्राकर गृहणी है प्रज्ञा चंद्राकर बचपन से ही मेधावी छात्र रही हैं हर साल क्लास में प्रथम आती रही है स्कूल में अच्छे परिणाम के लिये कई बार उन्हें सम्मनित किया गया है।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा महासमुंद के वेडनर मेमोरियल स्कूल से हुई है उसके बाद उन्होंने 10 वी से 12 वी तक कि पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से पूरा किया, प्रज्ञा ने स्नातक चंडीगढ़ विश्वविद्यालय व परास्नातक तमिलनाडु के अन्नामलाई विश्वविद्यालय से पूर्ण किया। CSIR-JRF में आल इंडिया रैंक 55 प्राप्त कर प्रज्ञा ने लखनऊ के CSIR- CDRI से अपना पीएचडी पूर्ण किया। पीएचडी में पब्लिकेशन के आधार पर उसका सलेक्शन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए हुआ है। वर्तमान में प्रज्ञा चंद्राकार अमेरिका के न्यूयॉर्क के अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च फेलो के पद पर कार्यरत है और ट्यूबेरकुलेसिस और काला अजार पर रिसर्च कर रही है।

डॉक्टर प्रज्ञा चंद्राकर ने बताया कि उसने नही सोचा था कि हार्वर्ड में चयन हो जाएगा, चयन होने पर खुशी है।सफलता के लिए पैशन जरूरी होता है इसके लिए मैंने काफी मेहनत है। पीएचडी के पब्लिकेशन के आधार में चयन हुआ है। मेरा पैशन मुझे हॉर्वर्ड ले गया है मुझे ऐसा लगता है। हार्वर्ड में मुझे बेहतर करना है वहा के सुविधा को अच्छे इसे उपयोग कर अच्छा रिसर्च करना चाहती हूं ताकि जब यहा से मैं भारत लौटू तो एक एमिनेंट साइंटिस्ट बन कर लौटू। अपने देश के लिए बेहतर कर सकू ये मेरा हमेशा कोशिश रहेगा, अभी वर्तमान में अल्बर्ट आइंस्टीन कार्यरत हूं, टी. बी. बीमारी के टीका निर्माण में काम कर रही हूं। जब मैं चंडीगढ़ में पीएचडी कर रही थी वहां मुझे मेरे मेंटर सुसानताकार ने कहा था कि गुड साइंस पर काम करना है उस समय मैं गुड साइंस क्या होता है ये ठीक से नही समझ पा रही थी। गुड साइंस क्या होता है उनसे मैने सीखा।
मेरे मम्मी पापा ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है उनका विश्वास ही मुझे यह तक ले आया है।
इस उपलब्धि पर उसने कहा कि इन उपलब्धि का श्रेय सबसे पहले भगवान को देना चाहती हूं, वैसे साइंस मेरे लिए भगवान है। दूसरा श्रेय मेरे मेंटर सुसानताकार को देना चाहुगी जिन्होंने मुझे गुड साइंस क्या होता है बताया था।

मेरी रोल मॉडल मेरी क्यूरी रही है जब उन्होंने रेडिएशन पर कार्य किया था और उन्हें दो बार नोबल मिला था। वो पहली महिला साइंटिस्ट थी वो मुझे बहुत इंस्पायर करती है।

पढ़ने वाले विधार्थियो को कहना चाहूंगी कि स्कूल लाइफ में ही किसी चीज के लिए पैशन पैदा करना चाहिए है आप किसी चीज पर 100 प्रतिशत देते है तो बाद में आपको भी उससे 100 प्रतिशत मिलेगा। साइंस एक सोच है कुछ अच्छा करने एक जज्बा है कुछ बेहतर करने की।

बेटी के हॉर्वर्ड में चयन होने से बेहद खुशी है इसके लिए उसने बहुत मेहनत किया है, हार्वर्ड में चयन हो जाएगा ये तो नही सोचे थे पर चयन हुआ है बेहद खुशी है। बेटी प्रज्ञा शुरू से ही मेधावी रही है। जब प्रज्ञा 12 में थी तभी से कुछ अलग करने की चाह इसने रखी थी। साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका से आने के बाद बेटी देश के लिए काम करे ।

प्रज्ञा को पढ़ाने वाले टीचर कल्पेश जोशी ने बताया कि प्रज्ञा शुरू से ही कुछ अलग करने की चाह रखने वाले छात्रा थी उसका सोचने का तरीके अन्य छात्रों से अलग था उसको देखकर ऐसा लगता था कि इसमे कुछ खास बात है, पढ़ाई के दौरान्त ही प्रज्ञा ने कहा था उसे साइंटिस्ट बनाना है और प्रज्ञा अपने सपने में सफल हुई। प्रज्ञा का हार्वर्ड में सलेक्शन होना हमारे लिए अप्रत्याशित नही था, उसके मेहनत और और सोच से लगता था कुछ विशेष करेगी, महासमुन्द जैसे छोटे शहर से हार्वर्ड अमेरिका तक पहुचने में हम सभी को बहुत खुशी है।

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